जिस तरह मध्य प्रदेश के भिंड-मुरैना के नाम पर समाज-कंटकों ने दाग लगा दिए, वैसे ही राजस्थान के धौलपुर पर भी बदनामी का साया पड़ा. कुछ लोग सामाजिक जीवन से छिटक कर असामाजिक हो जाते हैं, और उन्ही की गतिविधियाँ उनके गाँव-शहर के नाम पर भी अपना असर दिखा कर रहती हैं. धौलपुर की छवि भी एक समय ऐसी ही बन गयी थी, जिसके चलते यहाँ के निवासियों की बोली में एक आक्रामकता आज भी सुनाई देती है. यूं तो यह धवलपुर है, अर्थात श्वेत शहर. डाकुओं को जीवन में बहुत कम लोगों ने देखा होता है, पर उनके किस्से-कहानियां सब सुनते हैं. ऐसे ही अनेकों प्रसंग धौलपुर से भी जुड़े हैं. धौलपुर एक ऐतिहासिक शहर है. यहाँ के कई स्थानों पर मुग़ल-कालीन नगरों की झलक मिलती है. तेज़ धूप के इस शहर में मुग़ल-स्थापत्य भी देखा जा सकता है.यहाँ आसमान जितना साफ दिखाई देता है , धूप की तल्खी भी उसी मिजाज़ की है. यहाँ की संस्कृति मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान, तीनों की मिश्रित संस्कृति है, जो भाषा से लेकर खान-पान और व्यवहार तक में देखी जा सकती है.यहाँ पत्थर बहुतायत में होता है. बड़ी-बड़ी शिलाओं का इस्तेमाल गाँव तक के मकानों में होता है. पथरीली भूमि पर पत्थर की पतली कटी हुई लम्बी-लम्बी पट्टियाँ यहाँ खड़े आकार में आसानी से लगाई जाती हैं. इनका भार भी दीवारें और नीव आसानी से इसलिए सह लेती हैं, कि ज़मीन सख्त है. पहली बार वहां गए सैलानियों को तो ऐसा लगता रहता है कि यह पट्टियाँ कहीं दीवारों से निकल कर गिर न पड़ें. यहाँ सैनिक स्कूल होने से देश को सैनिक प्रदान करने का श्रेय भी इस नगर को है. आखेट-युगीन प्रवृत्तियां यहाँ की मानसिकता में आज भी रची-बसी हैं.
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