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गुरुवार, 12 मई 2011

हाशिये का अकेलापन बारां ने भी झेला है

मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा पर है एक और आदिवासीबहुल जिला बारां. जब हम राजस्थान के पिछड़े जिलों की बात करते हैं, तो हमें बारां का नाम भी लेना पड़ता है. ऐसा हम ही नहीं कहते, बल्कि सरकार खुद भी कहती है. सरकार ने पिछड़े जिलों के विकास के लिए जो विशेष फंड की व्यवस्था की है, उसके हितग्राहियों में बारां भी है. बारां शहर में आपको एक विचित्रता और भी दिखती है. यह मूल रूप से तो छोटा सा फैला-फैला मामूली शहर है, पर बाद में जिला मुख्यालय बनने और विकास की सूची में आने से यहाँ सरकारी इमारतें नई और बड़ी-बड़ी बन रही हैं.इस से यह भी नए-पुराने शहर में बँट गया है.फिर भी उन्नति को लेकर यहाँ के रहवासियों में एक भोला उत्साह है. यही उत्साह यह भी बताता है कि इन लोगों में सामूहिकता की भावना विशेष है, वरना अब बड़े शहरों में अपने शहर से लगाव भला कितनों को रह गया है? कुछ समय पूर्व जब इसका निकटवर्ती जिला झालावाड सुर्ख़ियों में आया था तो फ्लड लाइट इस पर भी पड़ी.नतीजतन कोटा के साथ मिल कर एक सुनहरा त्रिकोण यहाँ भी बन गया जो चौड़ी शानदार सड़क और काली-सिंध नदी के आकर्षक  नज़ारे में बदल गया. जिस पर आदमी मेहरबान नहीं होता, उस पर कुदरत ज्यादा मेहरबान होती है. राजस्थान के कई नामी-गिरामी जिले इस रूप में बारां से ईर्ष्या कर सकते हैं कि यहाँ हरियाली की छटा बेहद आकर्षक है. वन-प्रांतर में अरण्य-जीवों की संभावना भी बलवती है. 

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