यदि सब घर के लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक ही जगह रहते चले आते हैं तो उनका काम मौन से भी चल जाता है और परदे की ओट से खांस-खखार कर भी. लेकिन यदि पत्नी गाँव में रहे और पति रोज़ी कमाने की खातिर परदेस में , तो फिर काम खांस-खखार कर नहीं चल पाता. तब तो एक-दूसरे को पातियाँ भी भेजनी पड़ती हैं और बोल-बोल कर फोन भी घनघनाने पड़ते हैं. इस सब से और कुछ हो न हो सब लिख-पढ़ ज़रूर जाते हैं. यही कारण है की झुंझुनू खूब पढ़े-लिखों का ही नहीं , बल्कि शिक्षा का अच्छा -ख़ासा केंद्र ही बन गया. शेखावाटी के बहुत से लोग बरसों से रोज़ी-रोटी और व्यापार के लिए दूर-दराज़ में आते-जाते जो रहे. इस जिले के हर भाग में शिक्षण-संस्थाओं की भरमार है. पिलानी का नाम तो दुनिया भर में जाना-पहचाना है.यहाँ के कालेज और स्कूलों ने तो राजस्थान में बरसों से शिक्षा की गुणवत्ता का अलख जगा रखा है. खास बात यह है , यहाँ सरकारी प्रयासों से नहीं बल्कि निजी कोशिशों से बड़े-बड़े संस्थान बने हैं. बिरला बंधुओं ने एक मिसाल कायम की है, सबसे पहले, जिसे बाद में कई दानवीरों ने दोहराया है. झुंझुनू क्षेत्र की बोली में थोड़ी सी हरियाणवी और कौरवी की झलक मिलती है. बरसों पहले जिस 'सती प्रथा' का उन्मूलन समाज सुधारकों ने कर दिया था, उसकी याद दिलाने वाला 'रानी सती का मंदिर' भी यहीं है.राजस्थानी संस्कृति को चारों दिशाओं में फ़ैलाने का काम भी यहाँ के लोगों ने खूब किया है.यहाँ के हृष्ट-पुष्ट लोग खेलों में भी देश की शान रहे हैं.
राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को उभारने के सराहनीय प्रयास कर रहे हैं आप|
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